आज के भौतिकवादी युग में धन की लालसा इंसान की कमजोरी बनने लगी है, इसलिए अब दुनिया के अधिकांश देशों में या तो पूंजीवाद हावी हो चुका है या कोई दूसरी व्यवस्था होने के बावजूद छद्म रूप में पूंजीवाद देखने को मिलता है। ऐसे देश जहां पूंजीवादी अर्थव्यवस्था लागू नहीं है और किसी अन्य आर्थिक मॉडल को अपनाया जा रहा है उन देशों में भी वहां के शासकों ने पूंजीवाद को अपने आसपास केंद्रित करके रखा हुआ है।
वर्तमान व्यवस्था तो एक दूसरे का शोषण कर अपना हिस्सा बढाने की मानसिकता पर ही टिकी है। एक ऐसी आर्थिक प्रणाली जिसमें अधिकांश लोगों का हर दिन तनाव भरे माहौल से शुरु होकर तनाव भरे माहौल में ही खत्म होता हो और कोविड - 19 के बाद जिस आर्थिक प्रणाली के कारण जीवन और भी तनावग्रस्त हो गया हो वह आर्थिक प्रणाली लोगों को तनावमुक्त कैसे कर सकती है। इसलिए इसका समाधान ढूंढने के लिए एक नई आर्थिक प्रणाली की कल्पना करनी होगी। एक ऐसी आर्थिक प्रणाली जो उन लोगों के द्वारा दिशा प्राप्त करेगी और संचालित होगी, जो वर्तमान आर्थिक प्रणाली के असली चेहरे से भलीभांति परिचित हैं और बदलाव के लिए बेताब हैं।
कोरोना महामारी से निपटने में जिस प्रकार विभिन्न देशों की आर्थिक प्रणालियां असफल हुईं उससे यह स्पष्ट हो गया है कि, सभी प्रणालियों में स्वार्थ तत्व हावी है और लोगों में अनुशासन कम हो रहा है। इससे उन लोगों को अधिक तकलीफ हो रही है जो, अनुशासित और स्वार्थ रहित जीवन जीते हैं और देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। ऐसे लोग भले ही अभी दुनियां के सभी देशों में 20 से 25 के आसपास हों लेकिन इनमें बदलाव लाने की ताकत है और वे नई आर्थिक प्रणाली का गठन करने में सक्षम हैं।
हम जिस 175 करोड की जनसंख्या वाली नई अर्थव्यवस्था की कल्पना कर रहे हैं वह स्वार्थ के बजाय परमार्थ की मानसिकता से चलेगी। हम दुनिया भर के जिन 20 से 25 प्रतिशत लोगों से नई अर्थव्यवस्था को दिशा देने की उम्मीद कर रहे हैं, वे वर्तमान परिवेश और आधुनिक तकनीकी का प्रयोग परमार्थ भाव से करते हुए बिज़नेस मॉडल विकसित करेंगे।
आज दुनिया भर में उद्यमी, कृषक, सेवा प्रदाता स्वार्थ की मानसिकता से वस्तु या सेवा उपलब्ध करने में जुटा है, जिसके चलते ही उन्हें जहां एक और अपने उत्पाद या सेवा बेचने के लिए प्रचार प्रसार कर ग्राहकों को लुभाना पड़ता है, वहीं ग्राहकों को लुभाने में असफल होने पर अनसोल्ड स्टॉक के रूप में नुकसान उठाना पड़ता है। यदि वहीं यह कार्य परमार्थ भाव से हो जिसमें उचित कीमत लेने की व्यवस्था हो तो शायद न तो भ्रामक विज्ञापनों की जरुरत ही पड़ेगी न ही अनसोल्ड स्टॉक की स्थिति ही बनेगी।
भारतवाद ऐसी ही आर्थिक प्रणाली की कल्पना है जिसमें परमार्थ पर आधारित बिज़नेस मॉडल को अपनाया जायेगा। चूँकि परमार्थ भाव से विकसित होने वाली जिस नई आर्थिक प्रणाली को आकार दिया जाएगा उसमे भारतीय संस्कृति और भारतवासियों की अहम् भूमिका होगी इसीलिए इसे भारतवाद की संज्ञा दी जा सकती है।
In today's materialistic era, the greed for money has started to become the weakness of man, so now in most of the countries of the world, either capitalism has dominated or despite having some other system, capitalism is seen in disguise. In countries where capitalist economy is not applicable and other economic model is being adopted, even in those countries, their rulers have kept capitalism centered around them.
The present system is based on the mindset of increasing one's share by exploiting each other. An economic system in which most of the people's day starts from a stressful environment and ends in a stressful environment and after Covid-19, the economic system due to which life has become even more stressed, how can that economic system make people stress free? Therefore, to find a solution, a new economic system has to be conceived. An economic system that will be directed and driven by those who are well acquainted with the true face of the current economic system and are eager for change.
The manner in which the economic systems of various countries failed to deal with the corona pendemic, it has become clear that selfishness dominates in all systems and discipline is decreasing among the people. This is causing more trouble to those people who lead a disciplined and selfless life and want to do something for the country. Such people may be around 20 to 25 percent in all the countries of the world but they have the power to bring change and they are capable of forming a new economic system.
The new economy that we are envisioning with a population of 175 crores will run with the mindset of benevolence rather than selfishness. The 20 to 25 percent of the people around the world, we expect to guide the new economy, will develop business models using the current environment and modern technology in a charitable manner.
Today, most of the entrepreneurs, farmers, service providers all over the world are engaged in providing goods or services with the mindset of selfishness. It requires promotion to entice customers to sell their product or service. Failure to do so result loss in the form of unsold stock. If this work is done in a Benevolence spirit, in which there will be a system to take a fair price, then there will probably be neither the need for misleading advertisements nor the situation of unsold stock will arise.
BHARATVAAD envisions such an economic system in which a business model based on benevolence will be adopted. Since the Indian culture and the people of India will have an important role in the new economic system that will be developed with benevolence spirit, therefore it can be termed as BHARATVAAD.
1947 में अंग्रेजी शासन से आज़ादी मिलने के बाद, भारत में , ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ के Economic System के कुछ अंशों को लेते हुए, एक Mixed Economic System को अपनाया गया। 3 दशक से अधिक समय बीतने पर शिमला में 20 से 27 मार्च 1985 तक इस बात पर विचार करने के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया गया कि जिस Economic System को हम अपनाते आ रहे हैं वह देश की परिस्थितियों को देखते हुए कितना सटीक है और इसमें किसी परिवर्तन की आवश्यकता है या नहीं। इस सेमिनार में 50 से अधिक बुद्धिजीवियों, शोधकर्ताओं, इतिहासकारों, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों आदि ने भाग लिया।
भारत को विकसित राष्ट्रों जैसे जीवन स्तर को प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए, भारी उद्योगों में निवेश करें या नहीं , कृषि, शिक्षा प्रणाली, सामाजिक न्याय और सर्वांगीण विकास के लिए क्या किया जाए, किस तरह आर्थिक व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सकता है, ऐसे कई विषय थे जिन पर विचार रखते हुए सेमिनार में दुनिया के कई देशों की समीक्षा की गई। कुछ ने Mixed Economic System को भारत के लिए बेहतर माना और कुछ ने Social Democracy (सामाजिक लोकतंत्र) की वकालत की। कुछ ने Free Economy (मुक्त अर्थव्यवस्था) को अपनाने पर जोर दिया, जबकि कुछ ने एक ऐसी नई प्रणाली स्थापित करने के बारे में कहा जिसमें आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन लाभदायक हो, जबकि Luxury सामानों का उत्पादन महंगा हो।वस्था) को अपनाने पर जोर दिया, जबकि कुछ ने एक ऐसी नई प्रणाली स्थापित करने के बारे में कहा जिसमें आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन लाभदायक हो, जबकि Luxury सामानों का उत्पादन महंगा हो।
एक सप्ताह तक चली इस संगोष्ठी में कई चर्चा सत्र हुए, लेकिन इस संगोष्ठी का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला और देश आगे बढ़ता रहा। सन 1985 से 2023 तक आज भी भारत की आर्थिक व्यवस्था 1985 से पहले की तरह आंशिक परिवर्तनों के साथ Mixed Economic System (मिश्रित अर्थव्यवस्था) की पटरी पर चल रही है।
क्या यह आवश्यक नहीं है कि एक बार फिर शिमला सेमिनार जैसा आयोजन किया जाए, जिसमें पिछले 75 वर्षों की समीक्षा हो। सेमिनार में न केवल एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था पर चर्चा हो जो भारतीय मानसिकता पर आधारित हो और जो भारत के वर्तमान सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक ढांचे और मांग के अनुरूप हो। बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक नए आर्थिक मॉडल की जरुरत को पूरा कर सके। यह पुस्तक ऐसे किसी सेमिनार की रुपरेखा पर प्रकाश डालती है, साथ ही दुनिया के लिए अब एक नए आर्थिक मॉडल की जरुरत को रेखांकित करते हुए "भारतवाद" के रूप में एक विकल्प को भी सुझाती है।
पुस्तक में जहां एक और 'परस्पर शोषण (Exploitation) करने की मानसिकता', Artificial Scarcity of Capital (पूंजी की कृत्रिम कमी) जैसे गंभीर मुद्दे उठाए गए हैं जो आज कई देशों को आर्थिक और व्यावहारिक रूप से खोखला कर रहे हैं लेकिन पूंजीवादी सोच के चलते उन पर चर्चा ही नहीं होती, वहीं दूसरी ओर, सार्वभौमिक कल्याण (universal welfare) और 'परमार्थ के साथ व्यापार' (Business with Benevolence ) की महत्ता को रेखांकित किया गया है, जिसकी जरुरत आज पूरी दुनिया महसूस कर रही है। लेखक का मानना है कि वैश्विक कल्याण की भावना का पालन करते हुए 'भारतवाद" के रूप में एक नई आर्थिक व्यवस्था स्थापित की जा सकती है जो न केवल पूरी दुनिया के लिए पूंजीवाद और समाजवाद का विकल्प बन सकती है बल्कि पूरी दुनिया को एक नई सोच भी प्रदान कर सकती है।